Saturday 23 February 2013

स्कुल में आज सुबह से ही लोगो की भीड़ लगी हुई थी . मंगर , बड़े , पुनिया आदि गांव के सारे बच्चे अपने   मता  पिता के साथ स्कुल के प्रांगन में उपस्थित हो रहे थे।  मुझे भी उत्सुकता हुई यह जानने कि की आखिर बात  क्या है ? मैंने गांव के ही एक व्यक्ति से पुछा ;

-क्यों भागीरथ भैया! आज स्कुल में काहे दौडल-फान्दल चले जा रहे हैं ? हमको भी कुछ  बतलाईएगा?
-हाँ कहे नहीं ? आज सुन रहें हैं कि इस्कुलबा में आज पैईसा बंटेगा ? ई सच है का हो ?
-ई  तो हमरो भी नहीं पता था भैया ! चलिए हम भी चलते हैं . लड्डू  भी तीसरा में  पढ़ता है . पुछ  लेंगे शायद उसको भी कुछ मिल जाये ?

हम दोनों स्कुल में पहुंचे। मध्यविद्यालय अलावां। सारे शिक्षक एवं शिक्षिकाएं अपनी अपनी कुर्सी पर डटें हुए थे। दो चार गौएँ और भैंसें, तथा कुछ बकरियां विद्यालय के प्रांगन में अपनी मस्ती में चराई कर रहीं थीं। देखने से  किसी को भी लालू के चरवाहा विद्यालय की   यादास्त ताजी हो जाएगी।
 जैसा कि मुझे  हुआ। गोरखियों का पात्र शिक्षकगण  बखूबी  निभा रहे थे। भैया!  मुझे कोई  पानी पिलाओ यार ! मैं मूर्क्षित हो जाऊंगा। क्या आप मूर्क्षित नहीं हो जाएँगे?, ऐसे द्रिश्य को देखकर?
अगर आप कस्टिस्ट होंगे तो भैया आपको  जरा भी  तकलीफ नहीं होगी। क्योंकि हमारा प्रदेश बिहार इस मामले में काफी आगे है।

अब मैं सीधे मैडम के पास गया जो प्राचार्या थीं स्कुल की । मोटी  ताजि लगभग 150 kg की। मैंने अपना कर्तव्य निभाया और पैसे के सन्दर्भ में पहले बात की। क्योंकि आज पैसा ही सबकुछ है ये आप भी जानते हैं। नहीं तो  साला हजार-हजार करोड़ का  घोटाला घोटालेबाज क्यों करते? अन्ना हजारे, केजरीवाल,किरण वेदी आदि जैसे लोग क्यों मैदान छोड़कर अपने घर में घुंस जाते?  भ्रस्टाचार को भी शायद  भारत ही सबसे ज्यादा पसंद है। होना भी चाहिए, क्योंकि यहाँ सभी तरह की जलवायु जो  मिलती है? खैर! अफ़सोस की बात है कि सारा कुछ जानते हुए भी भारत की जनता मौन साधी  हुई है।

मैंने मैडम जी से पूछा-

-क्यों मैडम ये स्कुल है या चारागाह?

उनहोंने बड़ी नम्रता से जवाब दिया।

-जो आपको अच्छा लगे वाही कहिये।

वजाय इसके कि उन्हें जरा भी शर्म आती। पैसे लेकर सभी बच्चे तथा अभिभावकगण अपने-अपने घर को चले गए .

मैं वहीँ मैदान में बैठा आसमान की ओर देखकर कुछ प्रश्नों का जवाब खोजने का  प्रयास  करने लगा।

-आखिर नेताओं का ध्यान स्कुल के मुलभुत जरूरतों पर क्यों नहीं जाता है? क्यों नहीं वे स्कूलों में
Computer, प्रयोगशाला, बिजली आदि की व्यवस्था करते हैं? भोजन , सायकल , दलितों को रेडियो आदि पर खर्च करने से क्या वास्तव में हमारा देश विकास की ओर उन्मुख होगा?
या फिर इनकी कोई साजिश है जो आम आदमी अभी समझ नहीं पा रहा है?

जो भी हो हमें नींद से जगना होगा और अपने अधिकार को समझकर उसके लिए कोई न कोई कदम जरुर उठाना होगा।

                                                                                                भीष्म कुमार
         

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