Thursday 14 March 2013

 नवीन जोशी जी (हिदुस्तान के संपादक, लखनऊ  )  का लेख मैंने पढ़ा। काफी अच्छा लिखते  हैं। उत्तर प्रदेश के युवा मुख्य मंत्री अखिलेश यादव द्वारा इंटर पास सभी छात्र -छात्राओं को लैपटॉप वितरित किए जाने पर जो इन्होने अपनी प्रतिक्रिया दी है , बड़ा ही दुर्भाग्य पूर्ण है। एक सुशिक्षित और सभ्य व्यक्ति की जुवानी अगर इतनी रूढ़िवादी होगी  तो एक अच्छे समाज के निर्माण की कोरी कल्पना करना कितना हास्यास्पद होगा, ये बखूबी हम समझ सकते हैं। उनकी कलम से लिखी गई ये प्रतिक्रिया कि-

             "लैपटॉप नाम की प्यारी सी मशीन अपने आप में सब कुछ नहीं है। दुनिया से जुड़ने के लिए कनेक्टिविटी चाहिए। ब्रॉड -बैंड, डाटा कार्ड, यानि इन्टरनेट। वह कहाँ  से आयेगा? गरीब परिवार उसका खर्च कहाँ से उठाएँगे?" (14/03/2013)

इनकी ये टिपण्णी कितनी  गंभीर है, कितना हास्यास्पद है ? ये उन्हें  समझ में आती होगी। आज नेट इतना सस्ता है कि मात्र 126 रुपये में 1GB, तथा 198 रुपये में अनलिमिटेड पुरे 30 दिनों तक साइबर - संसार में विचरण करने के लिए बहुत  सारी  दूरसंचार कम्पनियाँ, जैसे Airtel, Idea, Relience आदि, प्रोवाइड कर रहींहैं। मुझे नहीं लगता है कि इतने रुपये बहुत ज्यादा हैं। इतना खर्च छात्र - छात्राएं अपनी जेब खर्च से भी निकाल सकते  हैं।

दूसरी टिप्पणी -

              " बेशक सपा की सरकार का यह ज़बर्दस्त चुनावी दाँव है या 2014 के लोक सभा चुनाव तक बन जाएँगे ...........
युवा मतदाता बाज़ी जिताने की कुव्वत रखते हैं। वर्ना उन विद्यार्थियों को भी मुफ्त लेपटॉप देने का क्या औचित्य था,  जिनके घरों में पहले से ही कम्प्यूटर हैं और उनका अपना लेपटॉप भी? गरीब विद्यार्थियों को छांट-छांट कर लेपटॉप दिए जा सकते थे।"

पहली बात ये कि अखिलेश ने सीएम  बनने से पहले ये वादा किया था। फिर इसमे चुनावी मुद्दा का बीच में घसीटना नवीन जोशी जी की औपनिवेशिक सोंच को उजागर करती है इसमे मुझे नहीं लगता है कि कहीं  कोई संदेह की थोड़ी भी गुन्जाईस है।
एक संपादक को जो मिडिया जगत  से संबधित ,  जैसा की यह प्रजातंत्र का चौथा  स्तम्भ है, इस  तरह  की मनोवृति का रखना पुरे  मिडिया जगत पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। और जहाँ तक 2014 के चुनाव का  प्रश्न है,  तो हम जनता को चाहिए क्या? कैसा नेता चाहिए? अखिलेश यादव जैसा या फिर राहुल गाँधी जैसा जिसने  सच्चाई के लिए अपनी जुवान तक नहीं खोली  थी  अन्ना एवं केजरीवाल के आन्दोलन के समय?
या फिर कपिल सिव्वल के जैसा जिनका "आकाश लेपटॉप " आकाश में ही लटका रह गया बजाय धरती पर आने के? या फिर पूर्व सीएम मायावती के जैसा जिन्होंने हाथियों की मूर्तियों पर अरबों रुपये खर्च कर डालीं?  क्या इनका ज़वाब नवीन जी के पास है? या फिर हरियाणा के मुख्य मंत्री चौटाला की तरह या फिर लालू यादव की तरह?

दूसरी बात नविन जी का कि लेपटॉप गरीब छात्र - छात्राओं को वितरित किए जा सकते थे। कितनी दोरंगी नीति का हवाला  देते हैं?  भेद -भाव के बीज को अंकुरित करने के सिवाय और ये  क्या हो सकता है? मैं न हीं सपा का समर्थक हूँ न हीं विरोधी। मैं एक निष्पक्ष नागरिक हूँ जो व्यक्ति के कार्य में  विश्वाश करता है। अखिलेश यादव ने एक सराहनिये कार्य किया है इसका इसका सभी को स्वागत करनी चाहिए बिना किसी  रुढ़िवादी   प्रवृति को जेहन में रखे।                                   

No comments:

Post a Comment